राणा जी की कलम से
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दही के चक्कर में कपास खा बैठे
वोट लेने शेर की खाल में शियार आ बैठे
इटली माफिया से बचाने गए थे देश को
शिखंडी को कृष्ण समझ द्रोपदी थमा बैठे
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56″ की नपाई अपने दिल से करवा बैठे
लगने लगा है नपुंशक को गले लगा बैठे
जिसे जाटों के खिलाफ दी थी बागडोर
कायर उन्ही जाटों की गोदी में जा बैठे
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राजनीति में पूरा प्रदेश जलवा बैठे
कुछ वोटों के चलते असली वोट भुला बैठे
नहीं बस की राजनीति तो सन्यास ले लो
हर मुद्दे में क्यों दुसरे पर इल्जाम लगा बैठे
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गुंडे लाठी के दम पे अपनी बात मनवा बैठे
कातिल अपने तलवों पर तुम्हे झुका बैठे
कल सोचा था नहीं लिखूंगा इस मुद्दे पे
बस दर्द में कलम को कागज़ पे चला बैठे
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अवधेश राणा
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