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शाहरुख़ की फिल्म दिलवाले

राणा जी की कलम से
राणा जी की कलम से
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अगर समीक्षकों की माने तो यह फिल्म अव्वल दर्जे की घटिया फिल्म है I फिल्म को देखने वालो में ज्यादातर या तो शाहरुख़ खान के कट्टर प्रशंसक थे या देश के तथाकथित सेकुलर I इसके अलावा धर्मविशेष की वजह से भी काफी लोगो ने यह फिल्म देखी I फिल्म की ज्यादातर कमाई खाड़ी देशो एवं पाकिस्तान में हुई I
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मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि हम लोगो ने इसका विरोध करके इसका प्रचार ही किया है I आज चाहे किसी ने फिल्म देखी हो या नहीं लेकिन इसके दुष्प्रचार ने लोगो में इसके लिए जिज्ञासा बढ़ा दी है I इसी तरह हमने आमिर खान की आने वाली फिल्म का विरोध करके अभी से प्रचार करना शुरू कर दिया है I मेरा सभी से अनुरोध है कि अगर आमिर की फिल्म का विरोध करना है तो कहीं भी फिल्म का नाम या उसका पोस्टर अपनी पोस्ट में न डाले I
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मेरे ज्यादातर दोस्त जिन्होंने शाहरुख़ का प्रशंसक होने के बावजूद फिल्म नहीं देखी, मैं उनका तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने राष्ट्र सम्मान को मनोरंजन से ऊपर रखा I जैसेकि हर जगह अपवाद होते है, कुछ कट्टर प्रशंसक अपने आप को रोक नहीं पाए और फिल्म देखने गए I फिल्म कैसी है उससे कोई मतलब नहीं I ये उनका व्यक्तिगत निर्णय है और भारत में सबको अपना निर्णय लेने का अधिकार है I यहाँ तो हम खुले में ही पैसाब कर देते है तब भी कोई नहीं रोकता I
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समझ में नहीं आ रहा कि उन लोगो के बारे में क्या लिखूँ जो फिल्म देखने भी गए और सोशल मीडिया पे उसके बारे में लिखा भी I अगर कोई किसी व्यक्ति के बारे में भला बुरा कहे वह मंजूर है लेकिन देश के बारे में बुरा भला कहने वालो के प्रति गुस्सा आता है I जिन्हें शाहरुख़ खान के बयान के बारे में कोई बुराई नहीं लगी, कम से कम दूसरों की भावनाओं की कद्र तो की जा सकती थी I अगर शादी वालों के पडोस में मातम हो जाता है तो शादी की रौनक और बाजे गाजे में कमी कर दी जाती है I फिल्म देखना अलग बात है लेकिन उसका प्रचार करना क्या जले पे नमक छिडकने के सामान नहीं है I जरा सोचिये !
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अवधेश राणा

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