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जाति है कि देश से जाती नहीं है
आरक्षण की चाह इसे बढाती रही है
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गुणवत्ता योग्यता पे जाति भारी है
जातिविहीन व्यवस्था सविधान ने भी नक्कारी है
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जिसे मिला है कहे ये देश का फर्ज है
सदियों तक पूर्वजो पे किये जुल्मो का कर्ज है
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कुछ तीन पीढ़ियों से मलाई चाट रहे है
ज्यादातर तो फ्री के अनाज में जिंदगी काट रहे है
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हर लेवल पे आरक्षण की लालसा है लपेटी
चाहे हो पासवान का बेटा या जगजीवन राम की बेटी
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जो कहते थे अगड़े वो पिछड़े बन रहे है
आरक्षण के लिए हड़ताल धरने कर रहे है
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इस व्यवस्था से उठा है स्पर्धा से विश्वास
मेरा मेरा करेंगे तो कैसे होगा देश का विकास
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आरक्षण से नौकरी नहीं बढ़ा सकती स्वाभिमान
संघर्ष से मिली सफलता ही दिलवाएगी सम्मान
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जितनो का भला हुआ उन्हें आरक्षण से बाहर करो
असली जरूरतमंदो के लिए रास्ता तैयार करो
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शिक्षा की सभी संस्थाएं सरकारी होनी चाहिए
सभी बच्चो को पढ़ने में मदद भारी होनी चाहिए
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जज्बातों में निकल गया मन में जो रोष है
नहीं तो इस विषय पे बात करना हमारे यहाँ दोष है
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अवधेश राणा
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