राणा जी की कलम से
- 48 Posts
- 77 Comments
सच पूछो तो आज भी होली के दिन मचल जाते है
मुश्किल ने अपने जज्बातों को काबू कर पाते है
………………………………
कभी हफ्ते भर करते थे रंग उतारने के उपाय
अब तो दो चुटकी गुलाल भी फेसबुक पे बताते है
………………………………
मिट्टी, ग्रीस, काला तेल, कोरडा हो गयी गुजरी बाते
आजकल ऑर्गेनिक रंगों को भी नाजुकता से लगवाते है
………………………………
परिजनों और पास पड़ोस से नहीं पाते अपनापन
होली खेलने के लिए मिक्का के शो के पास मंगवाते है
………………………………
होली के स्पेशल कपडे पहनकर भी रंगों से बचते है
बड़े हो गए है केवल औपचारिकता के लिए होली मनाते है
………………………………
अवधेश राणा
Read Comments