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गणतंत्र दिवस

राणा जी की कलम से
राणा जी की कलम से
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अजी सुनते हो, इस बार गणतंत्र दिवस सोमवार को पड़ रहा है पिछली बार तो रविवार को था तो कहीं जा नहीं पाए थे ! श्रीमती जी ने नया कैलेंडर देखकर कहा !

‘कहीं जाने का प्रोग्राम क्यों नहीं बनाते हो’, हर बार टाल जाते हो इस बार तो तुम्हे कहीं लेकर ही जाना ही पड़ेगा, मैं इस घर को देख देखकर बोर हो गयी हूँ

डार्लिंग, पिछले महीने बच्चो की फीस भी गयी थी इसीलिए थोडा हाथ तंग है

तुम्हारा हाथ कभी खुला भी रहता है, वो बगल वाले वर्मा जी को देखो हर साल कहीं न कहीं घुमने जाते है, एक तुम हो जो पैसे खर्च करने में नानी याद आ जाती है

गर्मियों की छुट्टियों में आगरा तो गए थे न

वाह, आगरा ! एक दिन के लिए ही तो गए थे वो भी पुरी रात उस सड़े हुए होटल में गुजारी, इस बार कोई अच्छा होटल बुक करवा लेना और हम कम से कम 3-4 दिन के लिए जायेंगे !

लेकिन अभी तो सर्दी पड़ रही है, पप्पू को पिछले हफ्ते ठण्ड भी लगी हुई थी !

अगर अपने घर जाना होता तो इतने बहाने नहीं लगाते !

इस बार गर्मियों में भी मम्मी पापा से मिलने नहीं गए, अच्छा समय है अभी हो आते है

अपने भाई से कुछ सीखो, वो तो पहले ही विदेश जा चूका है, तुम से ज्यादा पैसे कमाता है और बुढे बुढिया को हमारे ऊपर छोड़ दिया है ! मैं कहें देती हूँ, इस बार हम घुमने जा रहे है !

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अवधेश राणा

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