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जब भेज रही थी स्कूल
उस माँ को कहाँ गुमान था
अपनी आँख के तारे के साथ
ये उसका आखिरी सलाम था
बाप ने स्कूल में छोड़ते वक़्त
ठीक परीक्षा की दी थी हिदायत
उसे क्या मालूम था कि ये है
बच्चे को उसकी आखिरी नसीहत
वो माँ मान रही होगी जिन्दगी फिजूल
जिसने डांट के बच्चे को भेजा स्कूल
सोच के पछताती रहेगी उम्र भर
क्यों नहीं स्कूल न जाने की जिद्द कबूल
जब ये हादसा घट रहा था
पूरी दुनिया का कलेजा फट रहा था
जिनके थे स्कूल में नजरे-नूर
उनके ऊपर तो आसमान फट रहा था
जो थे सपने पुरे करने के काबिल
जिनके सहारे संजो रहे थे मुस्तक्बिल
देखा जनाज़ा जब अपने लालो का
वो माँ बाप हुए गम में गाफ़िल
किसका लाड करेंगे किसके सहेंगे नखरे
जिनके खोएं है लाल वो कैसे धीर धरें
ये इमान नहीं इंसानियत की हत्या है
इस त्रासदी को कैसे शब्दों में बयाँ करे
ओ मजहब के ठेकेदारों संभल जाओ
अपनी रंजिश में बच्चो को मत झुलसाओ
सांप काटने हुए अपना पराया नहीं देखता
अच्छा है ये जितनी जल्दी समझ जाओ
मुस्तक्बिल – भविष्य , गाफ़िल – बेहोश
अवधेश राणा
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