राणा जी की कलम से
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ईश्वर ने बनाके श्रृष्टि
दोडाई चारो तरफ दृष्टि
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ईश्वर का अंश था हर एक जीव
भगवान् चाहते थे रहना सबके करीब
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शुरू में कुछ नहीं दिया सुझाई
बहुत विचार के बाद ईश्वर ने माँ बनाई
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शब्द में नहीं समा सकती है माँ
खुद भूखा रहके बच्चो का पेट भरती है माँ
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काश हम चूका सकते माँ के अहसान को
माँ के आगे तो झुकना पड़ा खुद भगवान् को
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बच्चो के लिए गर्मी में छाया सर्दी में धुप है
तभी कहते है माँ ही ईश्वर का दूसरा रूप है
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अवधेश राणा
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