राणा जी की कलम से
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एक तरफ बच्चे भूखे मर रहे
दुसरे रौनक देखो बाजारों की !
कहीं फसले सूख गयी बिना पानी के
कहीं चले ठन्डी हवा फव्वारों की !
सीधे सादे लोगो को बताएं पागल
दुनिया में कद्र है मक्कारों की !
सच्ची सलाह देने वाले लगें दुशमन
बाते अच्छी लगती है चाटुकारों की !
अमन के रखवाले वहीँ बन बैठे है
जो दलाली करते है हथियारों की !
समाज सुधार का कोई ध्यान नहीं
मिडिया खबरे चलाता है बलात्कारो की !
मदद के लिए नहीं मिलते हाथ
भीख के लिए है भीड हज़ारो की !
कर्तव्य भूल गए है आजकल सभी
बस बात करते है केवल अधिकारों की !
बच्चो की धूर्तता पर देते है शाबाशी
फिर भी उम्मीद करते है संस्कारो की !
नक़ल करने वाले बने बैठे है ज्ञानी
बाते बंद हो गयी है नए अविष्कारों की !
दुनिया इतनी द्विअर्थी हो गयी है
कैसे सिखाएं बच्चो को बाते सदाचारो की !!
अवधेश राणा
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