राणा जी की कलम से
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जब से देखा है वो हसीं चेहरा
जिसके लबों पे है तिल का पहरा
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वो सुर्ख लाली गालो की
घटाओं सी झलक बालो की
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भवें कटार सी कटीली
झील सी गहरी आँखें नशीली
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माथे पे फैली हुई लटें
होठों पे पड़ी हुई सिलवटें
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नाक में छल्ला गोल गोल
बाली करती गालों से मेलजोल
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होठों पे कमल सी मुस्कान
लचकती कमर कत्ल का सामान
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मनमोहक सुराहीदार गर्दन
संगमरमर सा तराशा बदन
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मोह लेने वाली कोयल सी बोली
चले जैसे कि हिरनों की टोली
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दिलो दिमाग अभी भी वहीँ है ठहरा
जब से देखा है वो हसीं चेहरा
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अवधेश राणा
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