Menu
blogid : 15096 postid : 716657

ससुराल की होली

राणा जी की कलम से
राणा जी की कलम से
  • 48 Posts
  • 77 Comments

एकबार होली पे भाभी जी मायके जाने के लिए बोली ,
चौधरी साब ने सोचा साली के साथ इसी बहाने करेंगे ठिठोली !
…………………….
भाभी को साथ में एक दिन पहले पहुंच गए ससुराल ,
साली ने इतना आदर सत्कार हुआ की हो गए निहाल !
…………………….
सोचने लगे जब होली से पहले है इतनी मनुहार ,
कल होली वाले दिन तो आ जायेगी बहार !
…………………….
सुंदर सपने में विघन पड़ा जैसे मौसम हो तूफानी ,
‘बुरा ना मानो होली है’ कहके सोते समय किसी ने डाला पानी !
…………………….
सालो के साथ होली खेलने गए पड़ोसियों के घर ,
जैसे ही पानी में भीगा हुआ कोरडा लगा तो आ गए चक्कर !
…………………….
एक औरत का नाजुक हाथ कैसे हो सकता है इतना मर्दाना ,
पता चला पडोसी लड़के ने पहन रखे थे कपडे जनाना !
…………………….
वहाँ से निकले तो साली कड़ी थी सहेलियों के संग ,
सोचा चलो कम से कम इन्हें तो प्यार से लगायेंगे रंग !
…………………….
उस टोली को परखने में चौधरी साब से चूक हुई भारी ,
इन्होने साब की इज्जत उतारने के कर रखी थी तैयारी !
…………………….
किसी ने गोबर लगाया किसी ने ग्रीस से मुहं किया काला ,
बात यही ख़त्म नहीं हुई बाद में कीचड भरे नाले में डाला !
…………………….
वहाँ से निकले तो रास्ते में मिल गए साले के नशेडी मित्र ,
लगभग सारे कपडे फाड़े और हरण किया रहा सहा चरित्र !
…………………….
बड़ी मुश्किल से जान छुड़ाई करके मिन्नतें फ़रियाद ,
हमें सुनाने के बाद मुस्कुराने लगे करके ससुराल की होली याद !!
…………………….

अवधेश राणा

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply