Menu
blogid : 15096 postid : 670780

एक लड़की की दुविधा

राणा जी की कलम से
राणा जी की कलम से
  • 48 Posts
  • 77 Comments

जब मैं पैदा हुई तो सभी रिश्तेदारो ने दी
मेरे परिजनो को दिलासा ,
कोई बात नही पहला बच्चा है
दूसरे मे करना लड़के की आशा !
………………………
जब भी बाहर खेलने के लिए निकली
तो माँ ने ये कहके रौका ,
घर का काम सीखोगी तो अच्छा है
ससुराल मे तो करना है चूल्हा चौका !
………………………
जब भी छोटे भाईओ से किया मुकाबला
या दिखाई कुछ करने की तमन्ना ,
माँ ने समझाया पराया धन हो
ससुराल मे जाके अपनी इच्छा पूरी करना !
………………………
पहले सोचती थी कि ससुराल मे होगा सम्मान
और इच्छा पूरी करेंगे पति ,
विदाई के समय माँ ने कहा ससुराल मे
कुछ करने मे लेना सास की सहमति !
………………………
ससुराल पहुँची तो मेरे बारे मे ज़्यादा नही
लेकिन लाए हुए सामान की हो रही थी तारीफ़ ,
माँग से ज़्यादा दहेज दिया
सभी कह रहे थे माँ बाप को बड़ा शरीफ !
………………………
जैसे ही लड़की की माँ बनी
तो बदल गया सारा संसार ,
बहन जैसी ननद ताने देने लगी
माँ जैसी सास का कठोर हुआ व्यवहार !
………………………
सोचने लगी समाज मे क्यों है
लड़के और लड़की के लिए अलग व्यवहार ,
मुख्य कारण लगा होना मर्दो का
वितीय साधनो पर ज़्यादा अधिकार !
………………………
खैर मेरे साथ जो भी हुआ
नही होने दूँगी बेटी के साथ ,
पढ़ा लिखाकर आत्मनिर्भर बनाउंगी
दहेज के लोभियो को नही दूँगी हाथ !
……………………….
अवधेश राणा

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply