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चौधरी साब की प्रेम कहानी

राणा जी की कलम से
राणा जी की कलम से
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जब चौधरी साब ने पार की बचपन की दहलीज ,
बालो मे कंघी, आँखो पे चश्मा और लखनवी कमीज़ ,
स्कूल का डिसिप्लिन छोड़ जाने लगे नये कालिज ,
बड़े खुश होते थे जब कोई कहता था बदतमीज़ !
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छुट्टियों मे घर आए तो नया चेहरा देख नज़रे हुई स्थिर ,
चेहरा ऐसा जैसे की भगवान ने खुद बनाई थी तस्वीर ,
गोरे गोरे गालो पे काली काली ज़ुल्फो की लकीर ,
मोटी मोटी आँखो ने जब देखा तो चौधरी साब हुए फकीर !
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दिन रात की चैन गयी और छूटा उनका खाना ,
दोस्तो के लिए फ़ुर्सत नही बस उससे मिलने का ढूँढे बहाना ,
फिर कसमे वादे शुरू हुए शुरू हुआ रूठना मनाना ,
वादियाँ हसीन लगने लगी हसीन लगने लगा जमाना ,
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उससे शादी की तमन्ना मे भक्ति की इच्छा हुई इसबार ,
चौधरी साब भोले का कावड़ लाने जा पहुँचे हरिद्वार ,
कावड़ लेकर आते हुए रास्ते मे मिला बहुत बुरा समाचार ,
जब तक वापिस पहुँचे उसकी डोली जा चुकी थी दूसरे द्वार !
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दिन गुज़रे साब की भी शादी हुई और शुरू हुआ जीवन का नया अध्याय ,
कुछ साल बाद मिले लग रहे थे बीवी से दुखी और असहाय ,
मन ही मन बुद्बुदाये भगवान ने पहले ही सुझाया था उपाय ,
पहली बार इशारा किया था हम अज्ञानी नही समझ पाये अभिप्राय !
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अवधेश राणा

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